त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को मजबूत करने के लिए 1993 में 73वां संविधान संशोधन लागू किया गया था। इसका उद्देश्य था कि गांव के अंतिम व्यक्ति तक सरकार की योजनाएं पहुंच सकें, लेकिन जनपद पंचायत केशकाल में हालात इसके ठीक उलट नजर आ रहे हैं।
यहां 69 ग्राम पंचायतें हैं, लेकिन सिर्फ 36 पंचायत सचिव कार्यरत हैं। इसका सीधा मतलब है कि एक-एक सचिव को दो-दो, कहीं-कहीं तीन पंचायतों का कार्यभार दिया गया है। ग्राम पंचायत चिपरेल के सचिव को तीन पंचायतों — सलहेभाट, चिपरेल और सिदावंड — का जिम्मा सौंपा गया है।
गांवों में योजनाओं का क्रियान्वयन ठप पड़ा है।
ग्राम दादरगढ़ में बोर खनन, गणेश तालाब की खुदाई, और खाले पारा में निर्माण जैसे कार्य पिछले छह महीनों से लंबित हैं। ग्रामीणों द्वारा आवेदन और निवेदन दिए जाने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि सचिव समय पर उपस्थित नहीं होते, और जब होते हैं, तो फाइलों को टालते रहते हैं। पूर्व और वर्तमान सरपंचों ने भी सचिव की अनियमितता की पुष्टि की है।
गांव में अधूरे निर्माण कार्य
आंगनबाड़ी केंद्र अधूरा पड़ा है।
सार्वजनिक सुलभ शौचालय निर्माण भी अधूरा है।
योजनाएं अधूरी हैं क्योंकि बिल पास नहीं किए जा रहे हैं, और आवश्यक कागजातों पर सचिव द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए जाते।
ग्रामवासियों ने बताया कि सचिव खुद चिपरेल गांव का निवासी है, जिससे लोग खुलकर शिकायत नहीं कर पाते। ग्राम सभा की बैठकें नियमित नहीं होतीं, और जो निर्णय लिए जाते हैं, उन्हें कारवाही पंजी में दर्ज नहीं किया जाता।
GPDP (ग्राम पंचायत विकास योजना) अब तक नहीं बनी है, जिससे विकास की दिशा ही तय नहीं हो पाई।
ग्रामवासियों ने जिला और जनपद पंचायत प्रशासन से मांग की है कि
एक सचिव को एक ही पंचायत सौंपी जाए।
सचिव की नियुक्ति उसी गांव में न हो जहां वह स्वयं रहता हो।
पंचायत सचिवों की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित की जाए।
लंबित योजनाओं पर तत्काल कार्यवाही की जाए।
ग्राम सभा को अधिक अधिकार दिए जाएं और फैसलों को पूरी पारदर्शिता के साथ लागू किया जाए।
👉जनता का सवाल: कब सुधरेगा सिस्टम?
ग्रामीणों का कहना है कि जब तक प्रशासन सजग नहीं होगा, तब तक “विकास” केवल कागजों में ही रहेगा।
“जब तक आप निर्णय नहीं लेंगे, तब तक आपके निर्णय दूसरे लोग लेते रहेंगे।